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रामाचंद्रम की बेटियों के डॉक्टर बनने की प्रेरक कहानी |
तेलंगाना के एक छोटे से गांव में रहने वाले के रामाचंद्रम एक साधारण टेलर हैं। समाज में ऊँचा स्थान हासिल करने की उनकी ख्वाहिश खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने बच्चों के लिए है। कपड़े सिलकर जितनी भी मामूली कमाई होती है, वह पूरी तरह अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं। उनके लिए परिवार की आर्थिक स्थिति कभी बाधा नहीं बनी। अपने सीमित संसाधनों के बावजूद, रामाचंद्रम ने अपनी बेटियों के डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने की ठान ली है।
रामाचंद्रम का कहना है कि यह सिर्फ उनका सपना नहीं, बल्कि उनका जीवन है। बचपन से ही उन्होंने इस विचार को मन में पाला कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, वे अपनी बेटियों को डॉक्टर बनाकर रहेंगे। एक ऐसे पिता की कहानी जिसने अपने बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत की और समाज की संकीर्ण सोच से लड़कर उनका भविष्य संवारा।
एक दिन रामाचंद्रम ने फिल्म 'दंगल' देखी। फिल्म में एक पिता को अपनी बेटियों के लिए समाज से लड़ते और उन्हें आगे बढ़ाते देखा, तो रामाचंद्रम को ऐसा लगा जैसे वह खुद को ही देख रहे हों। उन्होंने महसूस किया कि यदि महावीर फोगाट अपनी बेटियों को कुश्ती में आगे बढ़ा सकते हैं, तो वह क्यों नहीं अपने बच्चों को डॉक्टर बना सकते? इस प्रेरणा ने उन्हें एक नई ऊर्जा और विश्वास दिया।
रामाचंद्रम की मासिक आय मुश्किल से 20,000-25,000 रुपये ही है, लेकिन उन्होंने बच्चों की पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं आने दी। पत्नी शारदा ने भी उनका हमेशा साथ दिया। दोनों ने मिलकर दिन-रात मेहनत की और अपने बच्चों के सपने पूरे करने में जुट गए। किसी तरह उन्होंने अपनी बेटियों की शिक्षा के लिए लोन लिया और जरूरत पड़ने पर घर तक गिरवी रख दिया।
समाज में कई बार लोगों ने उन्हें निराश किया और समझाया कि इतनी मेहनत करने के बावजूद भी इन सबका कोई फायदा नहीं होगा। परंतु, रामाचंद्रम का विश्वास अडिग था। वे जानते थे कि उनकी मेहनत और उनके सपनों का परिणाम एक दिन जरूर देखने को मिलेगा।
रामाचंद्रम और शारदा का संघर्ष उनकी बेटियों ने भी समझा। उनके कठिन जीवन ने बेटियों को भी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। ममता, माधुरी, रोहिनी और रौशनी – चारों बहनों ने अपने माता-पिता की तपस्या को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाए। हर परीक्षा में वे अपने माता-पिता का मान बढ़ाती रहीं और अपने सपनों की ओर बढ़ती रहीं।
आज उनकी सबसे बड़ी बेटी ममता MBBS की पढ़ाई पूरी कर डॉक्टर बन चुकी हैं। माधुरी भी मेडिसिन की पढ़ाई कर रही हैं, जबकि जुड़वा बेटियां रोहिनी और रौशनी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एडमीशन पाने की तैयारी में हैं। रामाचंद्रम के लिए यह उनके जीवन का सबसे बड़ा सुख है, क्योंकि उनके सपने को साकार होते देख रहे हैं।
रामाचंद्रम की कहानी न सिर्फ उनके परिवार के संघर्ष की कहानी है, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा है। वह इस बात के उदाहरण हैं कि शिक्षा का महत्व किसी भी अन्य चीज से ऊपर है। उनका मानना है कि शिक्षा ही वह हथियार है जो किसी भी परिस्थिति में सफलता दिला सकती है। उनकी इस यात्रा से यह बात साबित होती है कि यदि किसी के भीतर अपने लक्ष्य के प्रति सच्ची लगन हो तो कोई भी बाधा उन्हें रोक नहीं सकती।
रामाचंद्रम कहते हैं, "हमारी बेटियां ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं। हम सब कुछ खो सकते हैं, लेकिन उनकी पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं आने देंगे। चाहे जितना भी खर्च हो, मैं उन्हें डॉक्टर बनते देखना चाहता हूँ।"
रामाचंद्रम मानते हैं कि उनकी कहानी उनके जैसे कई अन्य माता-पिताओं के लिए प्रेरणा हो सकती है, जो अपनी आर्थिक स्थिति के कारण बच्चों के भविष्य को संवारने में सक्षम नहीं मानते। वह समाज में इस विश्वास को फैलाना चाहते हैं कि मेहनत और लगन से कुछ भी संभव है। उनका मानना है कि बच्चों को सही मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिलना चाहिए ताकि वे अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें।
आज जब उनकी बेटियों की सफलता की कहानी गांव में हर किसी के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है, तो रामाचंद्रम और शारदा का मन गर्व से भरा हुआ है। उनके संघर्षों का फल मिल रहा है और उन्हें इस बात का यकीन है कि उनकी बेटियां एक दिन न केवल उनका नाम रोशन करेंगी बल्कि समाज में भी एक आदर्श प्रस्तुत करेंगी।
रामाचंद्रम की कहानी उन लाखों माता-पिताओं की कहानी है, जो अपने बच्चों की सफलता के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं। यह कहानी एक उदाहरण है कि जब एक परिवार एक लक्ष्य के लिए एकजुट होकर प्रयास करता है, तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। बच्चों के लिए माता-पिता का संघर्ष और समर्पण ही उनकी सबसे बड़ी संपत्ति होती है।
रामाचंद्रम कहते हैं, "हमारे पास बहुत कुछ नहीं है, लेकिन हमारे बच्चों के सपनों के लिए हम कुछ भी कुर्बान कर सकते हैं। मैं हमेशा चाहता था कि मेरे बच्चे कुछ बड़ा करें, और आज उन्हें इस रास्ते पर बढ़ते देख मेरा दिल गर्व से भर जाता है।"
यह कहानी प्रेरणा देती है कि सच्ची मेहनत और अपने बच्चों के प्रति सच्ची चाहत हर मुश्किल को हरा सकती है। रामाचंद्रम और उनकी बेटियों का यह सफर संघर्षों से भरा हुआ है, लेकिन यह इस बात का प्रमाण है कि जब परिवार एकसाथ होकर किसी एक उद्देश्य की ओर बढ़ता है, तो वह लक्ष्य अवश्य पूरा होता है।