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रुपया कमजोर क्यों हो रहा है? |
1 फरवरी को भारत का बजट आ रहा है, जिसका इंतजार लोगों को है। इस लेख में हम जानेंगे कि भारतीय रुपया क्यों गिर रहा है और रुपया की गिरावट के फायदे और नुकसान ओर साथ में यह भी जानेंगे कि रुपया कमजोर क्यों हो रहा है? इसका आम जनता पर क्या असर हो सकता है।
भारतीय रुपया की गिरावट का कारण
स्विच यूएस डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया ने पहली बार 10 जनवरी 2025 को 86 के स्तर को छुआ, जो कि एक बड़ा बदलाव था। इससे पहले, दिसंबर 2024 में रुपया 85 के स्तर को पार कर गया था। 2024 में भारतीय करेंसी में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इसका मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।
अब सवाल यह है कि इस गिरावट की वजह क्या है? इसका सीधा असर विदेशी मुद्रा के बाजार पर पड़ता है। यदि रुपए की कीमत गिरती है, तो विदेशों से चीजों को इंपोर्ट करना महंगा हो जाता है। उदाहरण के लिए, अगर 50 रुपये में 1 डॉलर मिल रहा था, तो अब वही 85-86 रुपये में मिलेगा। इस तरह, विदेशों से सामान खरीदने में अधिक खर्च होगा।
रुपया की गिरावट के फायदे और नुकसान
रुपये की गिरावट के दो पहलू हैं: कुछ को फायदा होता है तो कुछ को नुकसान भी उठाना पड़ता है।
• नुकसान
पेट्रोल और सोने की कीमतें बढ़ सकती हैं।
महंगाई का स्तर बढ़ेगा।
विदेशों में पढ़ाई महंगी हो सकती है।
विदेशी निवेश घट सकता है।
• फायदा
भारतीय बिजनेसमैन को एक्सपोर्ट से फायदा होगा। अगर भारत में बने प्रोडक्ट्स को विदेश भेजा जाता है, तो बिजनेसमैन को ज्यादा रुपए मिलेंगे।
विदेशी टूरिस्टों के लिए भारत घूमना सस्ता हो जाएगा, क्योंकि एक डॉलर के मुकाबले उन्हें ज्यादा भारतीय रुपए मिलेंगे।
रुपया की वैल्यू कैसे तय होती है?
रुपया की वैल्यू डॉलर के मुकाबले किस हद तक बढ़ेगी या घटेगी, यह कई फैक्टरों पर निर्भर करता है। सबसे पहले, डॉलर को दुनिया की सबसे स्थिर करेंसी माना जाता है, और कई देशों के केंद्रीय बैंक डॉलर को विदेशी मुद्रा रिजर्व के रूप में रखते हैं।
रुपये की वैल्यू की स्थिरता के लिए भारत ने मार्च 1993 में फ्लोटिंग रेट सिस्टम को अपनाया था। इससे पहले, रुपये की कीमत पेग्ड एक्सचेंज रेट के आधार पर तय की जाती थी, जिसमें सरकार अपने करंसी की कीमत किसी दूसरे देश की करंसी या सोने से जोड़ देती थी। इस प्रणाली में सरकार को मुद्रा बाजार में दखलअंदाजी करनी पड़ती थी, जो जटिल हो सकता था।
पुराने सिस्टम और बदलाव
भारत ने 1947 से 1971 तक पार वैल्यू सिस्टम अपनाया था, जिसे ब्रेटन वुड्स सिस्टम भी कहा जाता है। इस सिस्टम में सरकार तय करती थी कि उसकी मुद्रा की कीमत सोने या डॉलर के मुकाबले कितनी होगी। हालांकि, इस प्रणाली के साथ कुछ समस्याएं भी थीं, जैसे कि सीमित सोने के भंडार के कारण आर्थिक विकास में रुकावटें आ सकती थीं।
इसके बाद, भारत ने 1971 से 1993 तक पेग्ड सिस्टम अपनाया, जिसमें रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर से तय की जाती थी। हालांकि, इस प्रणाली में भी केंद्रीय बैंक को बार-बार दखलअंदाजी करनी पड़ती थी, और इसे बदलने में मुश्किलें आती थीं।
रुपया कमजोर क्यों हो रहा है?
हाल के दिनों में, विदेशी निवेशकों ने भारत में निवेश करना कम कर दिया है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है। इसके अलावा, डॉलर में मजबूती और क्रूड ऑयल की कीमतों में बढ़ोतरी भी रुपये की गिरावट की वजह बन रही है।
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बाद डॉलर इंडेक्स को मजबूती मिली है, जिससे भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ा है। इसके कारण, भारतीय आम जनता को आने वाले समय में महंगाई का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष
1 फरवरी को भारत का बजट पेश होने वाला है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण क्या राहत देती हैं, खासकर महंगाई को लेकर। अब सवाल यह है कि क्या रुपया की गिरावट को काबू किया जा सकेगा और इससे कैसे निपटा जाएगा, यह आने वाले वक्त में तय होगा।
फिलहाल, भारतीय रुपये की गिरावट एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है, जिसे समझना और इस पर विचार करना जरूरी है।